ये हैं असली भू माफिया, मंदिरों को भी नहीं छोड़ा

भूमाफिया तो केवल नाम के हैं असली भू माफिया तो ये हैं देखिए खास रिपोर्ट 

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एंकर -: ग्वालियर की सरकारी जमीनों की सुरक्षा करने वाले ही अब शासकीय भूमि को भू माफियाओं के हाथों बेचने में जुटे हैं। और ये हम नहीं कह रहे ये कहना है ग्वालियर के बुद्धिजीवी वकीलों आरटीआई एक्टिविस्ट और समाजसेवियों का जो राष्ट्रहित में जनहित में जल जंगल और जमीन को भू माफियाओं से बचाने के लिए मुहिम चला रहे हैं। दरअसल सरकारी दावों के ठीक उलट भू माफियाओं को संरक्षण देकर शासकीय, चरनोई भूमि और जंगलों की जमीन पर भू माफिया और बिल्डरों को कब्जा दिया जा रहा है। और इसके जिम्मेदार अधिकारी कर्मचारी केवल अपनी जेबें भरने में जुटे हैं।

ग्वालियर में जल जंगल जमीन पर काबिज भू माफियाओं के खिलाफ मोर्चा खोलने वाले चंद लोग हैं जो अपनी जान की परवाह न करते हुए लगातार इसके खिलाफ आवाज उठाने का काम कर रहे हैं लेकिन यहाँ जिला प्रशासन के अधिकारियों और कर्मचारियों की भूमिका संदेहास्पद नजर आती है। क्योंकि कलेक्ट्रेट में हर रोज आने वाली सैंकड़ों शिकायतों के बावजूद किसी तरह की कार्रवाई इन भू माफियाओं और बिल्डरों के खिलाफ नहीं होती। जल जंगल और जमीन को हड़पने वाले इस गठजोड़ के खिलाफ लामबंद हुए वकील और समाजसेवियों की मानें तो सालों से एक ही कुर्सी पर जमे कर्मचारी अधिकारी इसके लिए सीधे तौर पर जिम्मेदार हैं। वहीं इनका ये भी कहना है कि जिले के जनप्रतिनिधियों के संरक्षण में पनप रहा यह गठजोड़ नेताओं को चुनावी फंडिंग करता है और इसके साथ ही अधिकारियों की जेबें गर्म करने का काम भी करता है।

सूत्रों के मुताबिक राजस्व विभाग के कई अधिकारी और कर्मचारी शासकीय भूमि पर बनने वाली की टाउनशिप के साइलेंट पार्टनर के रूप में अपनी और अपनों की व्यवस्था जमाने में जुटे हैं।

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सिरौल इलाके में बनी बड़ी टाउनशिप जो चरनोई की भूमि पर बनी हैं इनके खिलाफ लगातार शिकायतें हो‌‌ रहीं हैं लेकिन कार्रवाई शून्य…..?

बहोड़ापुर इलाके में शासकीय और सीलिंग की भूमि पर कई कॉलोनियों का निर्माण हो गया लेकिन पटवारी से लेकर एसडीएम और तत्कालीन कलेक्टर भी गहरी नींद सोते रहे, यहाँ पुलिस की फायरिंग रेंज पर भी अवैध कॉलोनियों का निर्माण हो गया लेकिन पुलिस के साथ प्रशासन की आँख नहीं खुली….?

मोतीझील क्षेत्र में पूरी पहाड़ी को काट कर पूरी आबादी को बसाने का काम धड़ल्ले से जारी है लेकिन आज तक किसी तरह की कार्रवाई नहीं हुई है।

पुरानी छावनी में तो मध्यप्रदेश के कैबिनेट मंत्री का पूरा होटल ही शासकीय भूमि पर बना है लेकिन कभी किसीकी नजर इस पर नहीं पड़ती क्योंकि वे मंत्री हैं और मंत्रियों और नेताओं पर कार्रवाई करने की औकात कम से कम प्रशासन की तो नहीं है।

फ्रूट मंडी के ठीक पीछे शासकीय भूमि पर बनी सैंकड़ों करोड़ की कॉलोनी को संबंधित अधिकारियों ने अपनी जेब भरकर सरेंडर कर दिया और इस मामले में शिकायत पर कोई कार्रवाई नहीं ।

सिटी सेंटर के पॉश इलाके में स्थित नगर निगम की स्वामित्व वाली बेशकीमती जमीन को शहर के एक राजनीतिक रसूखदार भू माफिया के मॉल की पार्किंग के लिए दे दिया गया। यहाँ गौर करने वाली बात यह है कि इस इमारत को पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार ने अवैध घोषित करते हुए बुलडोजर से ढहा दिया था। लेकिन भाजपा सरकार में वही इमारत वैध हो गई और ढहाए गई इमारत का हर्जाना नगर निगम की जमीन देकर भू माफिया को उपकृत कर दिया गया और ये पारित हुआ भाजपा सरकार के आने के बाद कैबिनेट की पहली बैठक में। इससे आप समझ सकते हैं कि सार्वजनिक भूमि पर जहाँ जनहित के कार्य हो सकते हैं लेकिन भ्रष्ट नेताओं, अधिकारियों और भू माफियाओं के गठजोड़ से हजारों बीघा शासकीय भूमि शहर के राजनीतिक रसूख वाले माफियाओं के हाथों बेच दी गई।

 

एडवोकेट संकेत साहू कहते हैं कि सरकारी अधिकारी और कर्मचारी, शासकीय वकील रिटायर्ड जज और नेताओं के गठजोड़ से शासकीय जमीनों की बंदरबांट जारी है। पूर्व न्यायाधीश निशीथ कुमार मोदी और उनके पुत्र अंकुर मोदी जो वर्तमान में एएजी के पद पर तैनात हैं

वहीं शासकीय वकील जो कोर्ट में भी शासन की जमीन को भू माफिया को सरेंडर कर रहे हैं।यहाँ आपको बताना चाहेंगे कि वर्तमान में शासकीय वकीलों की नियुक्ति में सीधे तौर पर राजनीतिक दखल होने लगा है यही वजह है कि अपने आकाओं को खुश रखने के लिए ये वकील किसी भी हद तक जाने के लिए तैयार रहते हैं।

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वहीं एडवोकेट दिनेश सिंह नरवरिया कहते हैं कि माफिया को पनपाने वाला एक सिस्टम है जो लोग सालों से एक ही सीट पर जमे हैं। इस सिस्टम में जमे अधिकारी और कर्मचारियों की जड़ें इतनी गहरी हैं जिन्हें उखाड़ना मुख्यमंत्री के लिए भी आसान नहीं है। ये लोग 15-20-25 साल से जमे रहने वाले कर्मचारियों को वरिष्ठ अधिकारियों का संरक्षण मिला हुआ है। ऐसी संपत्तियां जो शासन को अलॉट हैं उन पर भू माफियाओं से धनलाभ लेकर कब्जा कराते रहते हैं। ग्वालियर के जगना पुरा में जिस जमीन पर पार्क बन सकते थे जनता के लिए सुविधाओं का निर्माण हो सकता था उन पर नगर निगम के अधिकारियों की मिलीभगत से कब्जा होकर एक बड़ी कॉलोनी बन चुकी है।

शासकीय जमीनों को भू माफियाओं को सरेंडर करने के मामले में आरटीआई एक्टिविस्ट आशीष राय का कहना है कि असली भूमाफिया तो प्रशासन में बैठे अधिकारी हैं जो चंद रुपयों के लिए हजारों करोड़ों की बेशकीमती जमीन भू माफियाओं को बेच रहे हैं। ग्वालियर के सिरौल इलाके में चरनोई अर्थात गौचर की भूमि पर जो गौवंश और आवारा पशुओं के लिए आरक्षित थी उसे शासन के अधिकारियों ने अपनी जेबें भरने के लिए माफिया के हाथों बेच दिया और इसमें अधिकारियों की पार्टनरशिप है। यहाँ पटवारी से लेकर एसडीएम और कलेक्टर तक इस काम में लिप्त हैं आशीष एक बार फिर दोहराते हैं कि असली माफिया केवल ये प्रशासनिक अधिकारी हैं।

शहर के अंदर सरकारी भूमि पर कब्जे के विषय पर वकील लखनलाल शर्मा इसे एक गिरोह के रूप में देखते हैं। पटवारी आरआई तहसीलदार एसडीएम से लेकर पूरा प्रशासनिक अमला एक गिरोह के रूप में काम करता है। शिकायतों पर अधिकारियों की नीयत साफ नहीं है। ये जमीनें अचानक से भू माफियाओं के हाथों में नहीं जाती हैं इसका एक बड़ा षड्यंत्र चलता है। पटवारी से लेकर कलेक्टर की जिम्मेदारी ये है कि शासकीय भूमि पर अतिक्रमण करने वालो के खिलाफ कार्रवाई करें लेकिन ये प्रशासनिक गिरोह भू माफियाओं से मिलीभगत कर अपनी और अपने‌ आकाओं की जेबें भरने का काम करता है।

जल जंगल जमीन के लिए लम्बे समय से लड़ाई लड़ रहे आरटीआई कार्यकर्ता और समाजसेवी रंजन बाजौरिया को कई बार धमकी मिल चुकी हैं क्योंकि उन्होंने लगातार भ्रष्ट अधिकारियों के खिलाफ आवाज उठाने का काम किया है। बाजौरिया कहते हैं कि शिकायत हमने माफी औकाफ की जमीनों पर कॉलोनियों का निर्माण हो रहा है। कलेक्टर से लेकर पटवारी तक सब इसमें दोषी हैं लेकिन शासकीय भूमि पर कॉलोनी काटने के बाद भी प्रशासन कोई कार्रवाई न होती। आपको बता दें कि रंजन बाजौरिया को दी गई धमकी के विषय में शिकायत की तो अधिकारियों का कहना था कि हम क्या करें आप शिकायत मत करो। यहाँ एक बात गौर करने लायक है कि जो काम प्रशासन को करना चाहिए वह यदि आम आदमी करता है तो उसे धमकी मिलती है लेकिन निर्लज्ज अधिकारियों को शर्म नहीं आती।

 

बहरहाल शिकायतों का दौर जारी है और साथ ही जारी है भ्रष्ट अधिकारियों और उनके कथित आकाओं की काली कमाई जो बढ़ती जा रही है घट रही है तो सिर्फ जल जंगल और जमीन क्योंकि कलियुग में केवल जमीन और क…मीन की कीमतें बढ़ती हैं। जमीन सामने है और क…मीन‌ कौन है इसका फैसला आप कीजिए।

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