
मीडिया की बढ़ती भीड़ से भागते नेता….
मुद्दाविहीन पत्रकारिता के बीच जमीनी पत्रकारों का संघर्ष और चुनौतियां…
देखिए क्या कहते हैं पत्रकार…
देश भर में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और नए नए चैनलों की लगातार बढ़ती भीड़ हर चैनल के कर्मचारी की अपनी आईडी के साथ किसी नेता मंत्री अफसर की बाइट लेने के लिए हर रोज संघर्ष करना पत्रकारिता की चुनौतियों को दर्शाता है।
लेकिन सवाल ये उठता है क्या नेता मंत्री और अफसर पत्रकारों के संघर्ष और चुनौतियों को समझते हैं, यदि फील्ड में काम करने वाले पत्रकारों की मानें ग्वालियर में 100 के आसपास इलेक्ट्रॉनिक चैनल हैं इनमें कुछ नेशनल हैं कुछ रीजनल हैं और कुछ लोकल स्तर के सोशल नेटवर्क पर चलने वाले चैनल और वेबसाइट्स हैं और यही नहीं अब तो बड़े छोटे सभी अखबारों ने अपना डिजिटल संस्करण मैदान में उतार दिया है जिसके चलते इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का समूह अब भीड़ में बदलने लगा है।
बेलगाम कार्यकर्ता नेताओं को मीडिया से बात तक नहीं करने देते, या फिर नेताओं के पास सवाल ही नहीं होते…?
(हमने पत्रकारिता के क्षेत्र में वर्षों से कार्य करने वाले जमीनी पत्रकारों से चर्चा की तो उनका कहना था कि हमारे लिए सबसे बड़ी चुनौती मंत्री और नेताओं के साथ आने वाले बेलगाम कार्यकर्ता होते हैं क्योंकि जिस नेता के साथ ज्यादा कार्यकर्ता वो उतना बड़ा नेता शायद यही वजह है कि नेता अपने कार्यकर्ताओं को नियंत्रित करना नहीं चाहते जबकि होना ये चाहिए कि आप मीडिया से रूबरू होते समय कार्यकर्ताओं को थोड़ा अलग कर दें अक्सर ये देखा जाता है कि बाइट लेने पहुंचे प्रेस रिपोर्टर के साथ झूमा झटकी हो जाती है उनकी आईडी टूट जाती है और कई बार कैमरे को भी नुकसान पहुँचता है)
पत्रकारिता की ABCD न जानने वाले कर रहे माहौल खराब…
वहीं शहर के अखबारों में कार्यरत वरिष्ठ पत्रकारों से इस विषय पर बात की तो उनका कहना था कि सोशल मीडिया के दौर में ऐसे लोग भी इस फील्ड में आ गए हैं जिन्हें पत्रकारिता की ABCD भी नहीं आती इससे मीडिया की छवि भी खराब होती है और मीडिया में हर कोई ऐरा गैरा आ रहा है इसके लिए सरकार को नियम बनाने चाहिए वहीं दूसरी ओर वे नेताओं के व्यवहार पर भी सवाल खड़े करते हुए कहते हैं कि यदि मुख्यमंत्री आते हैं तो वे भी इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के दो तीन सवालों के बाद चल देते हैं उन्हें भी बैठकर जवाब देने चाहिए जिससे मीडिया का डेकोरम भी मेंटेन होता है। इसे व्यवस्थित करने के लिए सूचना प्रसारण मंत्रालय और राज्य के जनसंपर्क विभाग की जिम्मेदारी है कि सरकार और नेताओं के बीच बेहतर समन्वय स्थापित करें जिससे किसी को भी समस्या न हो।
महिला पत्रकार को सबसे अधिक परेशानी का सामना करना पड़ता है…
वहीं जब हमने शहर की युवा महिला पत्रकारों से बात की तो उन्होंने फील्ड रिपोर्टिंग को काफी चुनौतीपूर्ण बताया उनका कहना था कि पहली चुनौती यह है कि इस फील्ड में महिला रिपोर्टर बहुत कम हैं किसी भी इवेंट में मेल रिपोर्टर्स की बढ़ती भीड़ के बीच काम करने में काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है किसी नेता या मंत्री के आगमन पर एक कॉम्पटीशन शुरू हो जाता है कि हमें अपनी आई डी लगानी है आईडी लगाना मुद्दा नहीं है मुद्दा ये है कि क्या आपके पास कोई सवाल है जो आप जानना चाहते हैं या फिर अपने चैनल का लोगों कैमरे में दिखाना चाहते हैं ये मकसद है हमारा मकसद सिर्फ आईडी लगाना नहीं सवाल पूछना है इसलिए परेशानी होती है।
महिला पत्रकार का कहना था कि मेल रिपोर्टर्स कहीं भी घुस सकते हैं भीड़ में भी आईडी लगा देते हैं लेकिन महिला रिपोर्टर कहीं भी नहीं घुस सकती आप लोग कहते हैं कि इस क्षेत्र में महिला पत्रकार नहीं हैं लेकिन कैसे आएं महिलाएं आप उन्हें आगे आने दें थोड़ा उनके बारे में भी सोचे।
हर नेता और सेलिब्रिटी के साथ खुद की सोशल मीडिया टीम इसलिए मीडिया को दरकिनार कर रहे नेता
बहरहाल मीडिया की चुनौतियां बरकरार रहेंगी क्योंकि जो जिम्मेदार हैं उन्हें आपसे कोई मतलब नहीं कि आप पुरूष पत्रकार हैं या महिला पत्रकार हैं इसका एकमात्र कारण ये है कि सोशल मीडिया के प्रभाव के चलते आपकी उन्हें जरूरत नहीं है हर नेता के साथ उसकी सोशल मीडिया टीम चल रही है और ये टीम उसे जनता के सामने ऐसे पेश करती है कि जैसे वो मसीहा हो और मीडिया सवाल करती है जवाब मांगती है इसलिए जिम्मेदार कभी नहीं चाहेंगे कि ज्यादा सवाल हों और यही वजह है कि मुख्यमंत्री भी एक दो सवाल के बाद अपने रास्ते निकल जाते हैं और मीडिया माननीय मंत्री जी विधायक जी और सीएम साहब करते करते खुद में सिमट कर रह जाती है क्योंकि लोकतंत्र में मीडिया को चौथा स्तम्भ का नाम केवल खुश करने के लिए दिया गया है।
